Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Jan 7
अब लम्बी कविताओं का वक्त नहीं
ना ही बचे हैं लम्बे रिश्ते
शोसल मिडिया परोसता वासना के  किस्से
घरों में तड़प रहे मां - बाप से फरिश्ते
किताबें कोई छुता नहीं,डिजिटल बोर्ड टंगे दीवार
ज्ञान कोई लेता नहीं , डिग्रियां बिकती सस्ते
शारीरिक श्रम से विश्वास हटा,रोग मिले महंगे
मशीनों के सहारे ही अब कट रहे हैं रस्ते।।
Mohan Sardarshahari
Written by
Mohan Sardarshahari  56/M/India
(56/M/India)   
62
 
Please log in to view and add comments on poems