इश्क हमारा नादान उम्र में भी संजीदा था पीपल के पेड़ के नीचे कनखियों से देख मुस्कुराकर कर बस अंगड़ाइयां ले लेते थे ना उसने कभी कुछ कहा ना हमने बस बातें आंखें ही आंखों से कर लेती थी। अब झुर्रियों में इश्क फरमाना पेचीदा है बस स्याह काकुलें देख कर वाह! को आह के अंदाज में कहकर बंद आंखों से बीता समय महसूस कर लेते हैं ।।