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Nov 23
ऐ ज़िंदगी... थोड़ा हौले!
जिस ओर भी देखूं, तेरी रफ़्तार मानो पल भर में दुगनी हो जाती है।
तू चाहे तो इंद्र के वज्र को भी मात दे दे,
मेरी ये छोटी सी इमरजेंसी लाइट तेरे सामने क्या?

माना कि तेरा कमान थोड़ा भारी है,
पर मेरी कोशिश जारी है।
ना जाने कितने ही साँपों ने काटा मुझे अब तक,
अब सीढ़ियों पर चढ़ने की मेरी बारी है।

मैं कह रहा, ऐ ज़िंदगी, थोड़ा हौले!
मुझे भी तो संभलने का एक मौका दे दे।
छक्का नहीं लग रहा, तो दो-चार चौके ही दे दे।
शायद मेरी आवाज़ तुझ तक पहुँची नहीं।
और पहुँचेगी भी कैसे?
फिज़िक्स बुक में नहीं पढ़ा था?...
“Light travels at 3x10^8 m/s, whereas sound can only travel at 340 m/s…”

...वो देखो, मैं भी पागल!
ना जाने कहाँ से कहाँ चला गया...
इसी चंचल से मन को तो कायम करना था!
भूल गया कि साला राइम भी करना था।

माफ़ कीजिएगा,
शायद कुछ और ही कहना था मुझे,
पर मैं नादान किसी और ही दिशा में भाग रहा था।
भावनाओं में बहना था मुझे,
और मैं लॉजिक के गोते लगा रहा था।

कुछ ऐसा ही हर बार होता है।
बेताबी का मुझ पर हर पल वार होता है।
मन है मेरा, और इस पर मेरा ही काबू नहीं?
आख़िर ये कैसा समझौता है?

तो आइए, अब वापिस आते हैं।
इस अफ़साने को एक खूबसूरत अंजाम तक ले जाते हैं।
जाने देते हैं ज़िंदगी को अपनी रफ़्तार से आगे...
जहाँ कोई नहीं गया, आज वहाँ जाते हैं!

ज़िंदगी से जीतना कुछ और बात होती है।
पर ज़िंदगी को जीने में बात ही कुछ और होती है।
तो क्या हुआ,
अगर थोड़ी देर पुरानी यादों को चूम आया?
तो क्या हुआ,
अगर चलते-चलते एक नया मोड़ घूम आया?
प्यार से कह दूंगा ज़िंदगी को,
'मेरी जान, इस कमान का भार लेकर
बढ़ने में थोड़ी तो तकलीफ़ होगी।'
जैसे लेट होने पर बाबा माँ को फोन पर कहते,
'आ रहा हूँ, बस थोड़ी देर होगी।'
dead poet
Written by
dead poet  27/M/India
(27/M/India)   
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   Joginder Singh
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