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Oct 2024
करवा चौथ नहीं
यह तेरा श्रृंगार
और रूप निखार है
छत पर चढ़ती तेरी
पायल की झंकार है
छलनी में से देखती
आंखों का अंदाज है
अव्वल तो मेरे लिए
तेरे बदन की भीनी
खूशबू  का आगाज है
ज्यों -ज्यों बरस बीते जाएं
खूशबू बढ़ती जाती है
रंग तेरी साड़ी के देख
मेरी रैना इतराती है।
Mohan Sardarshahari
Written by
Mohan Sardarshahari  56/M/India
(56/M/India)   
  104
 
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