करवा चौथ नहीं यह तेरा श्रृंगार और रूप निखार है छत पर चढ़ती तेरी पायल की झंकार है छलनी में से देखती आंखों का अंदाज है अव्वल तो मेरे लिए तेरे बदन की भीनी खूशबू का आगाज है ज्यों -ज्यों बरस बीते जाएं खूशबू बढ़ती जाती है रंग तेरी साड़ी के देख मेरी रैना इतराती है।