चलो चुनावों की आज बज गयी रणभेरी है ना तेरी ना मेरी चलेगी अब जनता की बारी है पापड़ जैसे हल्की-हल्की सिकती जनता हर दिन है चुनावों में वह बनके लावा हर पत्थर पिघला सकती है भावनाओं के दोहन के नीचे हर बार दब जाती हैं देखो आजादी के पिचहतरे अब क्या गुल खिलाती है।।