आज सिमट रहा हूं मैं अपने वजूद में देखकर पीछे छूटा अरसा कुछ ख्वाहिशों ने चलाया कुछ जिम्मेदारियों का फरसा उठा , गिरा फिर उठा उठा पटक की वर्षा जीत मेरे हिस्से आई जितनी दिल फेंक को प्यार दोस्तों से जो कुछ सीखा वही आचरण में है सुमार इंतजार घरवाले करते हैं दोस्त तो उठा लेते हैं यार कड़वी को पी लेते दोस्त मीठे मिला दे कड़वा मीठी -कड़वी सुनकर इनकी हर्षित है मेरा मनवा।।