क्या रखा है वक्त गँवाने, औरों के आख्यान में, वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में।
पुरावृत्त के पृष्ठों में अंकित कैसे व्यवहार हुए? तेरे जो पूर्वज थे जाने कितने अत्याचार सहे?
बीत गई काली रातें अब क्या रखना निज ध्यान में? वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में।
इतिहास का ध्येय मात्र इतना त्रुटि से बच पाओ, चूक हुई जो पुरखों से तुम भी करके ना पछताओ।
इतिवृत्त इस निमित्त नहीं कि गरल भरो निज प्राण में, वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में।
भूतकाल से वर्तमान की देखो कितनी राह बड़ी है , त्यागो ईर्ष्या अग्नि जानो क्षमा दया की चाह बड़ी है।
प्रेम राग का मार्ग बनाओ क्या मत्सर विष पान में? वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में।
क्या रखा है वक्त गँवाने औरों के आख्यान में, वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में।
अजय अमिताभ सुमन: सर्वाधिकार सुरक्षित
इतिहास गवाह है , हमारे देशवासियों ने गुलामी की जंजीरों को लंबे अरसे तक सहा है। लेकिन इतिहास के इन काले अध्यायों को पढ़कर हृदय में नफरत की अग्नि को प्रजवल्लित करते रहने से क्या फायदा? बदलते हुए समय के साथ क्षमा का भाव जगाना हीं श्रेयकर है। हमारे पूर्वजों द्वारा की गई गलतियों के प्रति सावधान होना श्रेयकर है ना कि हृदय को प्रतिशोध की ज्वाला में झुलसाते रहना । प्रस्तुत है मेरी कविता "वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में" का चतुर्थ भाग।