मेरा देश ,मेरी जान पहाड़, नदियां और मैदान जिसकी मिट्टी निपजे अन्न कई तरह के दलहन नकद फसल में तिलहन जिसमें बसता मेरा मन ।
पहाड़ों में जिसके है बागान सूखे मेवों पर मैं कुर्बान शीशम , साल और सांगवान इमारती लकड़ी की हैं खान केशर की खूशबू वाला देश जिससे बना है मेरा तन।
कल कल नदियां कल कल झरने हमेशा रहे जिसकी शान सभ्यताओं की पुर पहचान शील, संस्कारित मेरा ज्ञान यही मेरी विश्व पहचान।
प्रायद्वीपीय दक्षिण क्षेत्र हमेशा समुद्री व्यापार का केन्द्र मिशाईल परीक्षण और उत्पादन दिलाता तकनीकी में मान मेरे देश की खूबियों पर मैं सौ सौ बार जाऊं कुर्बान।।