Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Jul 2022
हरा-हरा कुंदन का हार
जैसे तेरे गले बसे बहार
लंबे-लंबे कुंदन के झुमके
चूमे तेरे चमकते गाल
लब तेरे लगते गुलाब
चंचल आंखें करें कमाल
एक कंधे सजे दुपट्टा
दूजे सिल्की-सिल्की बाल
महकी-महकी तेरी बातें
दिल में भरते रोज नये ख्याल
तेरे ख्यालों की माला पहन
मैं जपता तेरा नाम पल-पल
ओ मेरे‌ रब्बा कर खैर
आज मेरी गली कर सैर।।
Mohan Jaipuri
Written by
Mohan Jaipuri  60/M/India
(60/M/India)   
  243
 
Please log in to view and add comments on poems