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Jan 2022
आ जाओ अब तो धूप सजने लगी
मेरे जज़्बातों को हवा लगने लगी।

कुछ रोज तेरे
इंतजार में कट गये
कुछ सर्दी की
भेंट चढ गये
बीता सर्दी का पहरा ख्वाब फिर सुलगने लगे।

याद‌ तुम्हारी भीनी-भीनी
बसी हृदय ज्यों कस्तूरी
मुस्कान तुम्हारी झिनी- झिनी
करती रोमांचित ‌ज्यों बिजूरी
फ़रवरी की आवक देख मेरे नैना तरसने लगे।

तेरे संग बीता समय
है मेरी सोने की‌ गिन्नी
तेरी बातें रस-रसीली
मेरे जीवन चाय की चिन्नी
फागुन के किस्से सुन, अरमानों से चिलमन हटने लगे।

तेरे आंचल की
महक गुलाब सी
आभा आकर्षक
सरसों खेत सी
देख खेतों के रूप मेले मेरे मन में सजने‌ लगे।।
Mohan Jaipuri
Written by
Mohan Jaipuri  60/M/India
(60/M/India)   
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     SUDHANSHU KUMAR
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