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Armin Dutia Motashaw
Poems
Nov 2021
किसीके लिए
बहुत मशरूफ है ज़माना, वक्त कहाँ है उसे, किसी के लिए
दो प्रेमभरी मीठी बात सुनानेका, वक्त कहाँ है हमे औरों के लिए
किसी औरके लिए कुछ कर जानेका; वक्त कहाँ है हमें, गैरोके लिए
किसीके आँसू पोछनेका; वक्त कहाँ है हमें, दुखियारों के लिए
अरे हमे तो आजकल फुरसत नहीं, हमारे अपनो के लिए भी ।
हे इंसान इतना भि मशरूफ न बन तू, कुछ तो कर जा अपनों और गैरों के लिए
Armin Dutia Motashaw
Written by
Armin Dutia Motashaw
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