Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Aug 2021
काश ना हुआ होता बटवारा
तो कीनना सोना होता आज का नजारा
ना हुई होती दंगे फसादी
ना ही हुई होती कही मारा मारी
तो कितने आजाद होते आज के खयाल
ना मज़हब में होते फासले
ना दिलो मे होती कोई दीवार
नाही हिंदुस्तान और पाकिस्तान दो नाम होते
दोनो एक मुल्क और एक जाहान होते
हंसते - खेलते दोनों मज़हब के परिवार होते
दिल मे महुबत और होंठों मे मुस्कान होते
नाही दिलो मे लगे होते कोई घाव ही
नाही पिंजरे मे कैद हुए होते कोई ख्वाब ही
उन बटवारो ने ना सिर्फ़ मुल्क या मज़हब को ही बाटां
उसने कई घरो को है उजारा
कई बनते ख्वाब को है बीखेरा
तो कई सपनो को बुझा डाला
बहुतो के सपने टूटे
बहुतो के अपने है रूठे
अपनो के हाथ ही नहीं छुठे
या बटवारे मे वो बीछर गए
या दंगो मे कई मारे गए
ईन बटवारो के आग ने कईयो को जलाया है
सिर्फ़ ईनसान को ही नहीं ईनसानीयत को भी मार गीराया है
काश ना हुए होते बटवारे
तो किनने सोने होते आज के नजारे
नाही लाला रतन और ईकबाल बेघ कभी जुदा हुए होते
नाही मोहबत के आरे कभी मजहब की दिवारे खरी होती
आज भी लाला रतन और ईकबाल बेग साथ होते
मुस्कुराहट की किलकारीया हर जगह गुंजा करती
ना कोई सपने राख हुए होते
नाही मीठी सी मुस्कराहट मातम मे तबदील हुई होती
और नाहि बच्चो की मासुमीयत कभी खोई होती
काश ना हुआ होता बटवारा
तो खुशीयो से भरा होता आज का नजारा
काश ये काश नहीं हकीकत होता
काश आज भी ईनहे बदल पाने का कोई तरीका होता
वो खुशीयो को वापस लाने कि गुनजायश ना अधुरी रहती
काश ना हुए होते बटवारे
तो कुछ अलग ही होते आज के नजारें
Akta Agarwal
Written by
Akta Agarwal  21/F/Kolkata
(21/F/Kolkata)   
  225
 
Please log in to view and add comments on poems