काश ना हुआ होता बटवारा तो कीनना सोना होता आज का नजारा ना हुई होती दंगे फसादी ना ही हुई होती कही मारा मारी तो कितने आजाद होते आज के खयाल ना मज़हब में होते फासले ना दिलो मे होती कोई दीवार नाही हिंदुस्तान और पाकिस्तान दो नाम होते दोनो एक मुल्क और एक जाहान होते हंसते - खेलते दोनों मज़हब के परिवार होते दिल मे महुबत और होंठों मे मुस्कान होते नाही दिलो मे लगे होते कोई घाव ही नाही पिंजरे मे कैद हुए होते कोई ख्वाब ही उन बटवारो ने ना सिर्फ़ मुल्क या मज़हब को ही बाटां उसने कई घरो को है उजारा कई बनते ख्वाब को है बीखेरा तो कई सपनो को बुझा डाला बहुतो के सपने टूटे बहुतो के अपने है रूठे अपनो के हाथ ही नहीं छुठे या बटवारे मे वो बीछर गए या दंगो मे कई मारे गए ईन बटवारो के आग ने कईयो को जलाया है सिर्फ़ ईनसान को ही नहीं ईनसानीयत को भी मार गीराया है काश ना हुए होते बटवारे तो किनने सोने होते आज के नजारे नाही लाला रतन और ईकबाल बेघ कभी जुदा हुए होते नाही मोहबत के आरे कभी मजहब की दिवारे खरी होती आज भी लाला रतन और ईकबाल बेग साथ होते मुस्कुराहट की किलकारीया हर जगह गुंजा करती ना कोई सपने राख हुए होते नाही मीठी सी मुस्कराहट मातम मे तबदील हुई होती और नाहि बच्चो की मासुमीयत कभी खोई होती काश ना हुआ होता बटवारा तो खुशीयो से भरा होता आज का नजारा काश ये काश नहीं हकीकत होता काश आज भी ईनहे बदल पाने का कोई तरीका होता वो खुशीयो को वापस लाने कि गुनजायश ना अधुरी रहती काश ना हुए होते बटवारे तो कुछ अलग ही होते आज के नजारें