Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Jul 2021
अब मैं उन हवाओं का सौदागर हूं
जो बीते मौसम साथ लाती हैं

घर ,खेत, बाग-बगीचे तो क्या अब
बाजारों की रौनकें भी रास नहीं आती हैं

तुझसे बिछड़ कर ही यह जाना
नजदीकियां कितना दुख पहुंचाती हैं

दिन की रोशनी अब तेरा अक्स नहीं
रातें भी डायन बन‌ कर बहुत डराती‌ हैं

भूल गए दुनिया वाले तेरी जो बातें
मुझे वो ही बातें हर पल याद आती हैं।।
Mohan Jaipuri
Written by
Mohan Jaipuri  60/M/India
(60/M/India)   
  183
   SUDHANSHU KUMAR and Surkhab
Please log in to view and add comments on poems