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Jul 2021
आज बादल बरसे हैं
गर्मी के नखरे उतरे हैं
देख धरा का सुर्ख रंग
मन में सतरंगी सपने बरसे हैं
ज्यों ज्यों झड़ी लगती गई
चाहत की अग्नि सुलगती गई
अभी तक बाहर‌ गर्मी थी
अब भीतर सुलगे शोले हैं
कभी ना भ्रमित इनसे होना
तेरे सपनों में‌ कोई‌‌ रंग नहीं
यह प्रकृति के हिचकोले हैं।
Mohan Jaipuri
Written by
Mohan Jaipuri  60/M/India
(60/M/India)   
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   SUDHANSHU KUMAR
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