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Apr 2021
बिखरे बिखरे से कुछ अल्फाज हैं
टूटे टूटे से कुछ ख़्वाब हैं
अंतरमन अब बेचैन सा हैं
हुए ख़्वाब आहत से हैं
दिल में लगा घाव सा हैं
बिखरे बिखरे से कुछ अल्फाज हैं
टूटे टूटे से कुछ ख़्वाब हैं
संघर्ष करना बना मुस्किल सा हैं
आसान राह की तलाश भी ना खतम होता सा हैं
डरा डरा सा अब मन रहता हैं
होटों की हसीं भी अब कही छुपा सा हैं
कहीं गम के सागर है
तो कही सुख के लहर हैं
किसी के सपने हुए राख से हैं
तो किसी ने नई सपनों की छवि बनाई हैं
सुन के बात यह नई दिल में आई कोई आश सी हैं
बिखरे अल्फाजो के सागर कोई
नए सपने बुनने के कोई ख़्वाब से हैं
Khwab bikhre s
Akta Agarwal
Written by
Akta Agarwal  25/F/Kolkata
(25/F/Kolkata)   
  214
 
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