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Feb 2021
कभी यूँही ख़यालों में
बचपन की यादों के गलियारो में
करती हूँ जब भी मैं सफ़र
एक चेहरा आता है नज़र
वो जो पोशाक से ले कर पहनावे तक
तालीम से लेकर रखावे तक
रखता था हिसाब और ख़बर
बसता क्या ,किताबें क्या, क्या क़लम ,क्या कवर
स्कूल हो ,या क्लास ,या सीट हो किधर
रहती थी जिसको हर बात की फ़िकर
हाथ के जिसके सिले कपड़े, बुने स्वेटर
निकले जब भी हम घर से पहनकर
सवाल हर कोई करता आगे बढ़ कर
किसने सिला किसने बुना कौन कारीगर
बीमार हो तो दवाखाने का चक्कर
बाज़ारों में घूमना भरी दोपहर
गुज़र जाता है बचपन पलक झपक कर
रह जाता है मगर जहनों के सफ़ों पर
होते है सभी माँ बाप भाई बहन उसका  हिस्सा
पर चेहरा वो है एक.........,,







नाम जिसका सबिहा
Written by
Shabistan Firdaus  44/F/Dubai
(44/F/Dubai)   
  204
   Khoisan
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