लोमड़ी ! ए लोमड़ी! चतुर चालाक तू पशु बड़ी तू खेतों का रूप है तेरी 'डो' 'डो' आवाज मुझको लगती प्यारी बड़ी फसलों को चूहों से बचाती तेरी चप्पल चालाक नजरें उन पर गड़ी-गड़ी तेरी खोदी हुई मांदों में हम छुपते थे घड़ी-घड़ी देखते थे तेरी पूंछ फूल झाड़ू जैसी बड़ी-बड़ी लोमड़ी! ए लोमड़ी!..
मतीरों के खेतों में तेरा फेरा लगता ऐसे जैसे हो मंदिर की फेरी चौकस नजरें और स्फूर्ति तेरे शिकार पर पड़ती भारी तेरी चपलता और चेष्टा की है महिमा बहुत न्यारी इसलिए ही जग में तू मशहूर है चालाकी धारी लोमड़ी! ए लोमड़ी! चतुर चालाक तू पशु बड़ी।।