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Dec 2020
दिसंबर की धूप
लगती दुल्हन का रूप

       रहती कोहरे के
     घुंघट में सिमटी सी
    निकलती लंच के समय
       शरमाती सी
सरकती ऐसे जैसे
मेहंदी वाले पांव सरूप

       देती है बस एक
      अबोली झलक
      जाना हो जैसे
     उसे पीहर तलक
कर जाती है हवाले ठण्ड के
जो रहती सीने में कसक स्वरूप।।
Mohan Jaipuri
Written by
Mohan Jaipuri  60/M/India
(60/M/India)   
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