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Aug 2020
एक पाककला का जादूगर
और परोसगारी का बाजीगर
      रोज सुबह खोले पिटारा
      देख ललचाए जी हमारा
      कोविड का समय है
      हम महसूस करें बेसहारा
हिया हमारा टूट रहा
अब बन जाओ तुम रफ्फूगर
      कभी शादियों की दावतें
      कभी पार्टियों की जाम खोरी
      कभी बेलन जैसे हथियार की
      मन गुदगुदाती मसखरी
इतने बड़े-बड़े मसले
पर नहीं है मेरे पास असले
अब बन जाओ तुम शौरगर
      कभी दिल्ली के पराठे
      कभी गुजरात के ढोकले
      कभी पंजाब के छोले भटूरे
      कभी बंगलुरु के डोसे
देखने के अब तक बहुत हो गए शोसे
कभी तो बन‌ जाओ उदर पूरगर
देंगे हम दुआएं बनकर पसरगर।
Mohan Jaipuri
Written by
Mohan Jaipuri  60/M/India
(60/M/India)   
30
 
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