एक पाककला का जादूगर और परोसगारी का बाजीगर रोज सुबह खोले पिटारा देख ललचाए जी हमारा कोविड का समय है हम महसूस करें बेसहारा हिया हमारा टूट रहा अब बन जाओ तुम रफ्फूगर कभी शादियों की दावतें कभी पार्टियों की जाम खोरी कभी बेलन जैसे हथियार की मन गुदगुदाती मसखरी इतने बड़े-बड़े मसले पर नहीं है मेरे पास असले अब बन जाओ तुम शौरगर कभी दिल्ली के पराठे कभी गुजरात के ढोकले कभी पंजाब के छोले भटूरे कभी बंगलुरु के डोसे देखने के अब तक बहुत हो गए शोसे कभी तो बन जाओ उदर पूरगर देंगे हम दुआएं बनकर पसरगर।