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Jul 2020
जब जब मैं इन्हें बनाता हूं
पसीना रीढ की हड्डी के ऊपर
चल कर पैरों तक आ जाता है
तो कभी नाक से उतर कर
मुंह में घुस जाता है।
मेरे शरीर की नमक की
पूर्ती सहसा ही कर जाता है
बिन पानी के ही मैं पवित्र
स्नान कर बाहर आता हूं
पर इसका मतलब यह भी नहीं कि
मैं अपने पसीने से तकदीर सींचता हूं
मैं तो बस गर्मी में अपने लिए
अपनी चार‌ रोटी बनाता हूं
पाठ यह सीखना बाकी है कि
महिलायें कैसे इतनी तपने के
बाद भी मुस्कुराहट के साथ
सबको खाना परोसती हैं
ना कभी एहसान जताती हैं?
Mohan Jaipuri
Written by
Mohan Jaipuri  60/M/India
(60/M/India)   
36
 
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