स्वागत बूंदाबांदी का भीषण गर्मी में ही होता है बरसात के बाद तो बूंदाबांदी महत्वहीन लगती है यह समझने में बहुत समय लगता है कि बरसात के बाद की बूंदाबांदी हर सजीव के जीवन में नया रस भरती है
जवानी की तपिश में भी रूमानियत बूंदाबांदी की तरह होती है तब पौरुष की बरसात तो घर संसार बसाने में ही खर्च होती है अधेड़ अवस्था ही बचती है जिसमें कुछ रूमानियत और कुछ रूमानियत की यादें जीवन में उल्लास भरती हैं बिखरते मेले की मायूसी दूर करती हैं लेकिन यह क्या ? दुनिया इसे सठियाना कहती है और यह बरसात के बाद की बूंदाबांदी की तरह गंदगी लगाने वाली लगती है लेकिन उन्हें नहीं पता कि यही वह बरसात के बाद की बूंदाबांदी है जो हर सजीव के जीवन में उल्लास भरकर नया रस बनाती है।