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Jun 2020
स्वागत बूंदाबांदी का
भीषण गर्मी में ही होता है
बरसात के बाद तो
बूंदाबांदी महत्वहीन लगती है
यह समझने में बहुत समय लगता है
कि बरसात के बाद की बूंदाबांदी
हर सजीव के जीवन में नया रस भरती है

जवानी की तपिश में भी
रूमानियत बूंदाबांदी की तरह होती है
तब पौरुष की बरसात तो घर संसार
बसाने में ही खर्च होती है
अधेड़ अवस्था ही बचती है
जिसमें कुछ रूमानियत और
कुछ रूमानियत की यादें
जीवन में उल्लास भरती हैं
बिखरते मेले की मायूसी दूर करती हैं
लेकिन यह क्या ? दुनिया इसे
सठियाना कहती है
और यह बरसात के बाद की बूंदाबांदी
की तरह गंदगी लगाने वाली लगती है
लेकिन उन्हें नहीं पता कि यही
वह बरसात के बाद की बूंदाबांदी है
जो हर सजीव के जीवन में
उल्लास भरकर नया रस बनाती है।
Mohan Jaipuri
Written by
Mohan Jaipuri  60/M/India
(60/M/India)   
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