Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
May 2020
"आत्मविश्बास"
          (confidence)      
एक अजीब सा आत्मविश्बास भरा था उन लोगों में,
कि हम पैदल ही घर  चले जायेगे..
मीलो चलते रहे अपने होसलो के साथ,
कुछ आसुयो ओर कुछ पसीने के  साथ..
सिर्फ़ इस इन्तजार में एक दिन हम भी,
अपनो से मिलेगे जिनके लिए हम दूर थे..
एक अजीब सा आत्मविश्बास भरा था उन लोगों में,
कि हम पैदल ही घर  चले जायेगे..
भूखे प्यासे तय करते मीलो
कुछ अपने छूट गए बीच सफ़र में,
कुछ अनजाने अपने बन गए उस सफ़र में..
चलते चले गए मीलो अपने घर को,
हर दर्द दबाकर अपने अंदर..
एक अजीब सा आत्मविश्बास भरा था उन लोगों में,
कि हम पैदल ही घर  चले जायेगे...
Written by
Shikha narvariya  24/F/Madhyapradesh
(24/F/Madhyapradesh)   
Please log in to view and add comments on poems