मौन है मानव मन में खौफ लिए अजीब सा मानव के अस्तित्व को घोर खतरा बनकर कोरोना लील रहा अजगर सा गलियां लगती हैं जैसे कोई तंत्र हो अय्यारी का जिस पर पहरा हो आदमखोर सियार का खामोशियां तप रही है बनकर बुखार सा गायब है बसंत की तरुणाई ना त्योहार ना कोई ब्याह-सगाई रंग बिरंगी बसंत की छटा भी लगती है एक बेगानी शादी में अब्दुल्लाह दीवाना सा घरों में कैद ये बच्चे सिर्फ खेल रहे ताश और कंचे कब खुलेगा इनका स्कूल रंग बिरंगी मछलियों का तालाब सा