प्रसन्नता सी झूमने लगती है तेरी एक बूंद से ही, भर-भर के जब तुम आती हो, एक पल के लिए कहूं, कुछ पल तो ठहर जा, मेरे अतृप्त मन को तो भर जा।
बिन बुलाए अतिथि जैसे आए तुम लेकिन तुम्हारी प्रतीक्षा नैनों में रहे, ऐसी अनुभूति लाते हो तुम।
मुझ हेतु एक अप्राप्य सौगात हो तुम, मार्ग देखें जिसकी कोई हृदय के रोगी, और वह नए-नए प्रेम के बंधन में हो जो। किंतु, भयभीत होते हैं कच्चे घर, वह जिनकी रोटी भी अपेक्षा से आधी है। प्रसन्नता का उपहार जहाँ कुछ के लिए, दुःख के सागर भी तुमने भर के दिए। एक ओर तुम्हारी हर एक बूंद जहाँ किसी के स्मित का कारण है, वहीं दूसरी ओर यही अश्रुओं का कारण भी है।