अब मिलती है व्हाट्सएप समूहों पर नित नई फोटो विस्मयकारी जैसे कोई ख्वाब हो चमत्कारी और पाते हैं हर सुबह नई तरुणाई दोस्तों की पोस्ट देख खुलती है मेरी आंखें पढ़ कर यूं लगता है जैसे कोई व्यंजन परोसा हो मुगलाई कहां है अब दादा-बाबा की बिस्तर कथा सिर्फ व्हाट्सएप समूहों में ही खुलती है अब कोई छिपी व्यथा यहीं पाते हैं रिश्तों की आभासी गरमाई अब फ्लैटों में नहीं आंगन वाली वो छाया ना संयुक्त परिवार वाली सुरक्षा की छत्रछाया व्हाट्सएप समूहों पर बस है 'शेयर' करने वाली ही माया जिससे होती है थोड़ी समय गुजराई।