कुछ परेशान सी हूं.... बताना चाहती हूं ये अपने करीबी लोगों को अपने आप से परेशान हूं ..... जहन मै बस ये ख्याल आता है आखिर क्यों हूं क्या कर रही हूं यहां क्या सिर्फ वायु बर्बाद कर रही हूं या दूसरो पे बोझ बनी हूं पूछना चाहती हूं सब से क्या बोझ लगती हूं आपको न जाने कहां खो सी गई हूं कभी कभी लगता है गलत जगह पर आकर फस गई हूं मन करता है मां को बिठाऊं ओर पुछु ... क्यों हूं मै जब किसी लायक नहीं तो क्यों भगवान जी को आप नहीं कहती कि उठा ले इसे भगवान ही ही सच बात दे शायद क्या हूं ओर क्यों खो गई हूं न जाने क्या चलता है दिमाग मै क्यों इतना सोचने के बाद भी एक फैसले के लिए सबकी राए लेनी पड़ती है खुद का क्या कुछ नहीं है मेरा खुद की कोई पसंद या अष्टित्व नहीं है क्या खुद क्या हूं.... सच मै मां बहुत खोई सी हूं मै लगता है बस मर रही हूं डर लगता है अपने आप से दुनिया को तो छोड़ो...उससे तो नहीं डरती पर अपने आप से डर लगता है ओर मा जब तुम ओर पापा भी साथ नहीं देते न तो बस यही सवाल आता है क्या मै इतनी गलत हूं कुछ सही नहीं कर सकती क्या इतनी बुरी हूं मै हमेशा अपने आप को ही कोष्टी हूं पर क्या करू आप से भी कभी कह नहीं पाती क्योंकि डरती हूं आपके डर से ओर आप समझ नहीं पाती या शायद मै समझा नहीं पाती जो भी है बस मै आपको अपने दिल की बात नहीं बता पाती दुख होता है मा रोना आता है पर नहीं रोती,बस थोड़ी हिम्मत जुटाई है कुछ दिन ओर जुटा कर बस सबसे दूर चली जाऊंगी चिंता मत कर मां तुझे तकलीफ ना पहुंचाऊंगी