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Oct 2019
मन ये मेरा चंचल कहीं रुकता नहीं,
एक जगह पे कभी टिकता नहीं।
कभी परिंदो की तरह उड़ता है,
तो कभी मछली बनके तैरता है,
कभी पहाड़ों में जाके घूमता है,
तो कभी किसी किताब की कहानियों में जीता है,
मन ये मेरा चंचल कही बैठता नहीं।

मन ये मेरा चंचल ककहिं रुकता नही,
कभी यादों के तैखने से निकालकर,
अतीत के लम्हों को जीता हैं।
तो कभी खुद की ही एक कहानी बनाकर,
उस किरदार में नई जिंदगी जीता है।
कभी उड़ जाता है भविष्य में,
और ना जाने क्या क्या सपने बुनता है।
मन ये मेरा चंचल कहीं ठहरता नहीं।

मन ये मेरा चंचल कभी संभालता नहीं,
कभी किसी की यादों में डुबकियां लगाता है,
तो कभी उन्हें ही याद करने से डरता है,
कभी किसी के साथ होने की ख्वाईश करता है,
तो कभी टूटे सपनों को फिर से पिरोता है,
कभी यहाँ कभी वहाँ बस भटकता रहता है,
मन ये मेरा चंचल कभी बस यूँही टहलता है।

मन ये मेरा चंचल अब ठहर से गया है,
तुम्हारे चेहरे पे आके ये रुक सा गया है,
बस तुम्हारी आँखों को तकता रहता है,
और तुमसे अगली मुलाकात को तरसता है।
शुरुवात भी तुम्ही से करता है और अंत तुम्ही पे करता है,
मन ये मेरा चंचल अब बस तुम्हीं को सोचता है
बस तुम्हीं को सोचता है।

#Satru - the enemy
Satrughan singh choudhary
Written by
Satrughan singh choudhary  23/M/Varanasi India
(23/M/Varanasi India)   
  397
   Piya
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