ओ मेरे बचपन के शहर तू ही रहा मेरा जवानी का घर तेरी सर्पिली स्टेशन रोड जो अभी बता देगी कितना मैं जीवन में चला पैदल और कितना था मेरा बाल स्वावलंबन इस रोड़ पर आगे कितना सुंदर रामचंद्र गनेड़ीवाला मंदिर जिसकी संगमरमर की जड़ाई मेरे बाल मन को सदा ही भायी इसका प्यारा पादप उद्यान देता पर्यावरण का विशेष भान हवाओं फिर से दो एक ऐसा झोंका जिससे मिल जाये एक महक का मौका।
चोपड़ आकृति पर बसा यह शहर जिसका हर छोर सैलानी स्थल वाला उत्तर में विशाल रामचंद्र पार्क जिससे सटी हनुमान व्यामशाला कभी होता था यहां अखाड़ा निराला पश्चिम में हनुमान पार्क जिसमें तरणताल विशाल दक्षिण में मंदिर गनेड़ीवाला संगमरमर की अद्भुत जड़ाईवाला पूर्व में मेहंदीपुर बालाजी जिसके महंत हैं लालजी मध्य में सफेद घंटाघर सेठ हरदेव दास जालान वाला जिसमें गोल वाचनालय निराला ऐसा मेरा शहर है बचपन वाला।
बिजली का यह बड़ा ठिकाना 33kv से 400kv तक का ग्रिड हर किसी के लिए ना अंजाना टावर ज्यादा आबादी कम रोशनी की प्यारी चमाचम बिजली के हर ऑफिस में गलाई थी मैंने अपनी जवानी खोई खोई सी परेशान किसी भी फाइल पर आज भी लिखावट में मिल जायेगी मेरे व्यक्तित्व की निशानी।
रघुनाथ विधालय का विशाल दालान ज्ञान का तीर्थ जिसके मुंहाने पाया मान इसकी डेस्कों पर आज भी चिपकी होगी रूह मेरी पढ रही होगी कोई उम्दा तहरीर आज भी इसके किसी रजिस्टर के खानों में होगी मेरे नाम की कोई पुरातन सी लकीर शहर का 'सूर्य' सिनेमा हाल बतायेगा कितनी बार मैंने थर्ड में बैठकर देखी फिल्म और हॉस्टल से बाहर रहने का किया था जुल्म।
संतों में संत तो विश्वनाथ जिस की बगीची अग्नि कोण की जिसने नि:स्वार्थ उनकी सेवा उसने जाना मानवता का दृष्टिकोण विद्वानो की खान यह शहर जहां जन्में 'कल्याण' संस्थापक भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार किशोर कल्पना कांत और सूर्य शंकर सरीखे राजस्थानी के रहे यहां धुरंधर परमहंस के धोरे पर अक्ष है इसके वजूद का जाओ वहां तो पाओगे संबंध है कोई सदियों का
परोपकारिकता की अद्भुत मिशाल यहां के जालान,भुवालका सरीखे नाम स्कूल, कालेज और चिकित्सालय सब इनके हैं नि:स्वार्थ काम धर्मशालाएं , पुस्तकालय और बस स्टैंड जैसे हों देवालय कोई सुन्दर मलाई वाला दूध यहां मिलता था कभी निरंतर।
संस्कृत,संस्कृति और आयुर्वेद का संगम हवेलियों के अद्भुत चित्र हैं नयनाभिराम श्याम मंदिर चोबीस घंटे रटा जाये राम जो दिलाये इसको दूसरा काशी नाम।।