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Sep 2019
तुझे भूलने की जो तलब लगानी थी
वो पूरी तरह लग न पाई
तुझे याद करने की जो आदत थी
वो कब सबसे बड़ी तलब बन गई
उसके आगे कुछ सूझा ही नहीं
क्या करू कुछ बुझा भी नहीं
कहना तो था बहुत कुछ तुझसे
पर तूने सुनने का मौका कभी ढूंढा ही नहीं
ऐसे कैसे हो गई हूं इतनी लापरवाह
तेरी चाह ने ऐसा क्या किया
तू तो मुझे चाहता भी नहीं
फिर क्यों ये चाह जगी है मुझमें
जो बुझती ही नहीं।
Written by
Rashmi
110
   Raj Bhandari
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