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Armin Dutia Motashaw
Poems
Sep 2019
काला साया
काला साया
एक काला साया प्रवेश कर गया, उसके हसते खेलते घरमे ।
पता नहीं चला किसीको तब, क्यों की था वो एक दुल्हन के बेस् में
उस बेटे के लिए तो यह कहावत सच निकली; "शादी या बरबादी"
बस कुछ दिनों में ही छीन गई उस हसते खेलते घरकी आबादी ।
दूल्हे को पूरे वश में कर लिया; फिर आयी देवरों की बारी ।
ननंद और सास को पहले अलग कर दिया पती से;
बारी बारी;
फिर देवरों पे लगाया निशान; कोशिश रही लगातार जारी ।
कुछ सालोमें, पती को बना दिया गुलाम; हार बिचारे ने मानी
सब हार गए, बिल्कुल अकेला बिचारा हो गया, नगरी थी अनजानी
दूर कहीं जा के खो गया; मां ने प्राण त्यागे, बहन राखी न बांध पाई ।
काले साये ने उनकी हसी खुशी सब छीन ली; संग उसके वो कालिख लाई ।
दुल्हन के रुप में, खुशी खुशी आया; और फिर, सिर्फ दर्द लाया ।
दुआ कीजिए, कभी कोई घर में आए न ऐसा काला साया ।
Armin Dutia Motashaw
Written by
Armin Dutia Motashaw
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