Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Jul 2019
यह बागड़ की बारानी खेती
मुश्किल मानसून की बारिश होती
उस पर औकड़ हवा का प्रहार
कर दे सब जोत बेहाल
कहीं छूटे हल कहीं छूटे हाल

मानसून पर किसान खेत पहुंचे
औकड़ चलते ही पैर वापस खींचे
प्रचंड औकड़ तीन दिन चल जाए
मानसून फिर फल न पाए
जवान हो या बच्चे बूढ़े
सभी हो जाएं टेढे - टेढे
औकड़ से हैं खेत बेहाल
कहीं छूटे हल कहीं छूटे हाल


औकड़ शायद नाम है इसका
क्योंकि सारा जीवन पीछे खिसका
जो कुछ अब तक पास था
मानसून में उसको जमीन में गाड़ा
आई औकड़ और उसे उखाड़ा
यह ना छोड़े धोरा और ना ही ताल
कहीं छूटे हल कहीं छूटे हाल

औकड़ से डर मैं शहर भागा
यहां भी महसूस करूं ठगा ठगा
औकड़ चलने पर ना कोई सगा
औकड़ बारानी खेती का बड़ा दगा
औकड़ सुखा नमी करे बेहाल
कहीं छूटे हल कहीं छूटे हाल।
Aukad is a disastrous wind flowing from west to east which distroys the crop in the thar desert part called "Baagad" including churu,bikaner,nagaur, SriGanganagar districts.
Mohan Jaipuri
Written by
Mohan Jaipuri  60/M/India
(60/M/India)   
115
 
Please log in to view and add comments on poems