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Armin Dutia Motashaw
Poems
May 2019
तकदीर
तकदीर
भाग ले तु चाहे जितना, तकदीर और कर्म से तु भाग न पाएगा
ताकत और अक्ल लगाले चाहे जितनी, बच न तु पाएगा
सेहना है जो तकदीर में, उससे तु कभी अपने आप को बचा न पाएगा ।
लोग करते हैं पाप और चतुराई, जर, जोरू और ज़मीन के लिए;
अपनो को देते हैं धोका, थोड़ी सी ताकत या दौलत के लिए
भले वोह अपनी मस्ती में जिए, पर कर्म तैयारी रखता है, उनको उलझाने के लिए ।
तेरी सोच संवार तु, बोली और कर्म संवार तु, अच्छाई का रास्ता अपना तु
शब्द शीतल जल जैसे होने चाहिए, अग्नि बाण का प्रयोग करना नहीं तु ।
कर्म भलाई के कर; कमसे कम ऐसे, हानि किसी को पहुंचाना नहीं तु ।
जो लिखा है तुने अपने कर्मो से, अपने ही हाथों से; उसे तु न मिटा पाएगा
अपने हाथों लिखी हुई तकदीर से उलझना नहीं, उसे तु बदल न पाएगा
बस कर्म सुधार; और भगवान के हाथो में, सौंप दे तेरी डोलती हुई नैया ।
Armin Dutia Motashaw
Written by
Armin Dutia Motashaw
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