दिल में खंजर चुभता है जब झूठों से बतियाते हैं मुलाकात जब आगे बढ़ जाती है शनि का न्योता आता है और कई भस्मासुर उत्प्रेरक बन जाते हैं फिर विनाश किश्तों-किश्तों में आता है उत्प्रेरक अलग हो जाते हैं और समय लीलने लगता है विनाश के निशान पीढ़ियों पर रह जाते हैं बेहतर है झूठों से पीछा छुड़ाओ कीमत जो चाहे लूटा़ओ मुमकिन है उस पार आशा किरण हो या फिर बेचैनी का अंत तो हो।