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Feb 2019
हाँथो   में   यहाँ   नश्तर   है  कई,
इक   आईना  है  पत्थर   है  कई।

ऐ  ख़ुदा  ये  ग़ज़ब का घर है तिरा,
इक माह है फ़क़त अख़्तर है कई।

अब  जीना यहाँ मुमकिन ही नहीं,
इक  मैं  हूँ सफ-ए-लश्कर है कई।

ये  जो  सीढ़ियों   सी   है  जिंदगी,
उतरिये  संभल  के ठोकर है कई।

मेरी  ख़बर  ही  न  रही  यारों को,
कहने  को  मिरे  दिलबर  है  कई।

रंजन उलझन ये किसपर हो यकीं,
इक  राही   यहाँ   रहबर   है  कई।

नश्तर--नुकीला खंजर, माह-- चाँद,
अख़्तर-- सितारे, रहबर-- मार्गदर्शक
सफ-लश्कर-- दुश्मन के फौज़ की लाइने
Ghazal
Avanish maurya
Written by
Avanish maurya  17/M/Delhi
(17/M/Delhi)   
  264
     --- and Juneau
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