सन् 2000 ,साल अट्ठारह, मई माह , तपत पठारी आंचल, ईश्वर कृपा यों हुई, देखा मराठवाड़ा प्रांचल ।
अजन्ता की बौद्ध गुफायें, जिनकी पेन्टिंग कहीं न पायें, मूर्तियां मुंह यों बोलें, जैसे जीवनसार बतायें। यू- आकृति मे बनी गुफायें, जीवन व्याधि का कारण बतायें।। एलोरा का कैलाश मंदिर, आर्किटेक्चर का गुरूशिखर।
शिव की स्थली ऐसी भाई,
नजरें बारम्बार दौड़ाई । खेतों में बैल जोते देखे,
कोटन, कोर्नसीड बोते देखे ,
छोटे- छोटे पानी के ह़ोद देखे,
कम पानी मे खेती के कमाल देखे।
लोग काफी व्यस्त देखे,
फिर भी बहुत शालीन दिखे ।।
धन्य मराठवाड़ा, धन्य लोग, जिनके सुन्दर हैं उद्योग। जगह का यह असर रहा,