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Oct 2018
जन्माष्टमी पर पूछती हूं तुझे

आज ब्रिज में मोहत्सव है, पधारेंगे यहां घनश्याम;
जोर शोर से, पुकारेगा हर कोई आज, प्रभू, तेरा ही नाम।

पर न तु मीराका हुआ , न हुई तेरी राधा; ऐसा क्यों घनश्याम ?
आज कल तो बोली लगती है, लेके तेरा नाम, करते हैं लोग तुझे बदनाम ।

परेशान है आज तेरा बनाया मानव, यह जहान और यह सारा आवाम ।
दुखी हूं बहुत मै, सच्चे मानवका देखके, यह दुखद अंजाम ।

हर चीज़ बिकाऊ है, हर व्यक्ति का, आखिर क्यूं है दाम;
सोच रही हूं, आखिर दुनिया क्यों बनाई तुने, ओ मेरे घनश्याम!

बड़ी श्रृद्धासे लोग पुंजते है तुझे, लेके तेरा नाम ;
पूजा अर्चना होती है तेरी शहर हो या हो गाम;

फिर भी प्रभु, होती है बुराई की विजय सुबह शाम;
तो, क्या पूछ सकती हूं मैं, क्यूं होता है,  ऐसा सच्चाई का अंजाम ?

कुछ तो बोल, अब तो मुंह खोल, ओ घनश्याम;
ओ कन्हाई काले, राधा के दुलहारे ,सब के प्यारे सलोने श्याम ।

Armin Dutia Motashaw
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   Surbhi Dadhich
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