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Oct 2018
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दिल-ए-नादां जो संभाले
से सम्भल गया होता।
ग़म-ओ-दुश्वारी-ए-दामन से
कब का निकल गया होता।।

ऐसी तन्हाइयां कहाँ मिलती
तब कारवाँ-ए-इश्क़ में।
आगाज़-ए-मोहब्बत में
गर ना फ़िसल गया होता।।

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©deovrat 11.10.2018
Deovrat Sharma
Written by
Deovrat Sharma  58/M/Noida, INDIA
(58/M/Noida, INDIA)   
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     Shabnam and Deovrat Sharma
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