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Shrivastva MK
Poems
Sep 2018
उस चाँद के नूर बदल गए....
मसरूफ़ थे हम उनकी मोहब्बत में और उन्हें लगा हम कहीं दूर चले गए,
अल्फ़ाज़ भी वही थे,लहज़े भी वही था और उन्हें लगा हमारे सुरूर बदल गए,
हमारी कशिश बढ़ती गयी उनके उल्फ़त में और उनकी गलतफहमियां,
अपनी क़िस्मत से फ़िर कैसी रुशवाई जब पलभर में उनके सुर बदल गए,
अब वो ना टूटता तारा नज़र आता,ना आती है नज़र उनकी फ़रेबी निगाहें,
फ़िर कैसी शिकायत ख़ुद की क़िस्मत से जब उनके सारे दस्तूर बदल गए,
दूरियां बढ़ती गयी,एहसास मरते गए फिर उन्हें दलील क्या दे,
जब वर्षो से चला आ रहा उनके चाहत के सारे फ़ितूर बदल गए,
आहिस्ता आहिस्ता वो दौर सिमट गए,जला दिए अपने सारे ख़्वाब,
अब मतलब उस ज़न्नत से क्या जब उस ज़न्नत के सारे हूर बदल गए,
मुड़कर देखा जब फ़लक को तो अश्क़ से भर चुकी थी निगाहें,
जिस चाँद को देख कभी मिलती थी खुशी,उस चाँद के सारे नूर बदल गए.....
Written by
Shrivastva MK
23/M/INDIA
(23/M/INDIA)
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