जा रहा था वो उस दिन, छोड़ के मुझे रोका नहीं उसको, ये क्यूं हुआ मुझसे। सोचा था उसके लिए, करूंगी कुछ सच्चा लगता नहीं पर कभी कभी, सच्चा भी अच्छा। बिना कुछ सोचे मुझे, उसने ठुकरा दिया सच को मेरे बिना सुने, उसने वहीं दफना दिया। सुन लेता वो मेरी तो, आज होते हम साथ पर उसके मन में तो थी, उसके अपनों की कही बात। हां चला गया अब वो, मुझसे बहुत दूर करके मेरे दिल का हाल, बिल्कुल चुर चुर। कर बैठा है नफरत मुझसे, सुनके अपनों की बात अपने वो हैं उसके जो, ना देंगे उसका साथ। समझ गई हूं मैं अच्छाई का ज़माना नहीं रहा मेरे अश्कों का भी अब कोई किनारा नहीं रहा। रोक सकती थी में उसे, पर मैने जाने दिया दुखों को मैने फिर दोबारा आने नहीं दिया। खुश रहती हूं अब मैं भी, अपने अपनों के साथ एक बुरे सपने की तरह में, भूल चुकी वो बात।