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Avanish maurya
Poems
Jun 2018
मैं अपनी ज़िन्दगी से |
मैं अपनी ज़िन्दगी से रूबरू यूँ पेश आता हूँ
ग़मों से गुफ़्तगू करता हूँ लेकिन मुस्कुराता हूँ
ग़ज़ल कहने की कोशिश में कभी ऐसा भी होता है
मैं ख़ुद को तोड लेता हूँ, मैं ख़ुद को फिर बनाता हूँ
कभी शिद्दत से आती है मुझे जब याद उसकी तो
किसी बुझते दिये जैसा ज़रा-सा टिमटिमाता हूँ
सज़ा देना है तेरा काम, कोताही बरतना मत
मैं नाक़र्दा गुनाहों का मुसल्सल ऋण चुकाता हूँ
मेरी मजबूरियां मेरे उसूलों से हैं टकराती
जहाँ पर सर उठाना था वहाँ पर सर झुकाता हूँ
मेरे अल्फ़ाज़ का जादू तेरे सर चढ़ के बोलेगा
दिखाई वो तुझे देगा, तुझे जो मैं दिखाता हूँ
Ghazal
Written by
Avanish maurya
17/M/Delhi
(17/M/Delhi)
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