आसमान में छितराये वो बादल पेड़ो के झुरमुट से आती वो आवाजें चीं-चीं ,काँ-काँ ,टयूँ-टयूँ, पिहू-पिहू इन सब को शांति से सुनती वो लतायें हवा के झोखे से हिलती वो पत्तियाँ सोते इंसानों को जगाती वो बोलियाँ इस मधुर-संगीत को कैद करते वो संगीतकार नाकामयाब से ढूंढ रहे अपने साज पर पकड़ न पाये वो ताल।
आँगन से उठता वो धुआँ खुशबू बिखेरता वो आशियाँ जहाँ हर चेहरा खिलता देख वो रोटियाँ जो मिटाती तन-मन की भूख।
ये ही है वो गुलिस्तां जिसे ढूंढ रहा पागल-सा वो इंसान जिसे खरीद नहीं सकता कुबेर का खजाना भौर की वो किरण ओस की वो बूंदें सकूँ भरी वो सांस ये ही है वो एक सुबह।