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Apr 2018
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सिनिग्ध चाँदनी बरस थी
धरती और गगन में  !
चाँदी जैसा अंबर दिखता
नादिया की कल कल में !!

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मन की वीणा पर था जैसे
सप्त सुरों का वादन !
कंठ स्वरों नें बरबस छेड़ा
मधुर मिलन का गायन !!

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मन्थर मंद मलय के झोंके
ख़ुशबू जैसे चन्दन !
सारा उपवन महक उठा
तब जैसे नन्दन कानन !!

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वो मनमीत, अतीत से
आकर बैठा सन्मुख मेरे !
स्वपन सलोना रहे सनातन
जब तक है यह जीवन !!

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(c) deovrat-12.04.2018
Deovrat Sharma
Written by
Deovrat Sharma  58/M/Noida, INDIA
(58/M/Noida, INDIA)   
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