Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Mar 2018
बहुत बुरे है हम,
शायद इसलिए अबतक अधूरे है हम,
ऐ ख़ुदा मुझे माफ़ कर देना,
क्योंकि किसी का दिल तोड़े है हम,

बहुत बुरे हैं हम,
ख़ुद की नज़रों में ही गिरे है हम,
जो बाग कभी पत्तों से घिरे थे,
उन्ही पत्तो की तरह आज खुद बिखरे पड़े है हम,

बहुत बुरे है हम,
उनकी मंज़िल के रोड़े हैे हम,
कभी उनकी साथ को इस कलम से सजाते थे,
आज ख़ुद एक बंद किताब पड़े है हम,
Shrivastva MK
Written by
Shrivastva MK  23/M/INDIA
(23/M/INDIA)   
257
       ---, Jayantee Khare and Shrivastva MK
Please log in to view and add comments on poems