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Feb 2018
कुदरत का भी अजब दस्तूर है !
जिससे तमन्ना थी बेइंतेहा,रूबरू होने की,
वही सनम हमसे खफा और बहुत दूर है,
मिन्नतें की खुदा से उसे पाने की,अपनी शरीक-ए-हयात बनाने की,
वही अपनों को छोड़ किसी गैर संग मसरूर है,
कुदरत का भी अजब दस्तूर है !!

जिसे चाहा बेतहाशा,उसी पर छाया किसी और की हसरत का फ़ितूर है,
हमने की सच्ची वफा,जो उसे हर दफा हुई नामंज़ूर है,
अश्क बहाए हैं जिसकी याद में,उसीने दिए काँटें ही फिज़ाओं वाले जरूर हैं,
कुदरत का भी अजब दस्तूर है !!!

वो ठहरी बेवफा,हम तो रहे वही दीवाने-मनमौजी-मतवाले,
आज भी अपनी चाहत पर हमें नाज़ है,गुरूर है,
जिसने ठुकराया,उसी को चाहने को यह दिल बेबस और मजबूर है,क्योंकि-
कुदरत का भी अजब दस्तूर है !!!!
- सचिन अ॰ पाण्डेय
Sachin Brahmvanshi
Written by
Sachin Brahmvanshi  19/M/Mumbai,Maharashtra
(19/M/Mumbai,Maharashtra)   
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