एक बरसात ऐसा भी जो बिन मौसम ही चले आते है, कभी खुशी तो कभी गमों के सागर में डूबा जाते है, भले ही छोटी पड़ जाती हो ये आंखे पर, दो -चार बून्द आंखों से टपक पूरी प्यास बुझा जाते है,
जब हम किसी से किये वादें भूल जाते है, तब शायद ये आंसू ही याद दिलाते है, भले ही इसकी कद्र ना हो किसी के सामने, पर जब भी आते है इन आँखों मे कुछ नया सीखा जाते है,
सूखे आँखों की शोभा बढ़ा जाते है, टूटे दिल को सुकून दे जाते है एक एक बूंद मिलकर आंखों में तब ये आंसू कहलाते है....