यह चमकता ब्रह्मांड जिसका न कोई आरंभ न अंत न कोई आयु, न कोई कष्ट हर पल चमकता हर पल प्यारी सी मुस्कान देता चुम्बकीय हिलोरें लेता यह नटखट ब्रह्मांड जिद्दी ग्रहों को गोद में भरता नाचते तारे-सितारों को सहलाता देख, दूर कोने में क्यों बैठा वह आग का गोला अकेला क्या जंजीरों ने घेरा उसे शायद इसलिए भूल गया शीतलता इस श्वेत हृदय पर कैसा ये कलंक बुराइयों ने एेसा क्या जकड़ा इसे या यह गिरफ्त में आ गया किसी जहरीले सॉप के फन में आज दिन तो कल रात कभी उदय तो कभी अस्त इस ब्रह्मांड की गोद में....