धूल चख के उठ जाना राही, लगता है तेरी मंज़िल कहीं और है, हॉंसलें की साँस भर के फिर खड़ा हो जाना तू, लगता है तेरा वक़्त कहीं और है, गिरने से खरोचें भी तो कई आएँगी, उम्मीद है तेरे आँसू तेरे घाव भर देंगे, कहीं अकेला ना समझे खुदको, राहगीर भी तुझे कई मिलेंगे, अब इसी धूप में मीलों-मील चलना है तुझे, लगता है वो तारों की छाओ कहीं और है, धूल चख के उठ जाना राही, लगता है तेरी मंज़िल कहीं और है.