पल पल ये टूटती है , बढ़ रही है डगर डगर। जिंदगी की चाल ये , बदल रही है सफ़र। कभी उड़ रही हवा में ये, कभी झुकी हुई ये फूल सी। कभी जीत रही जहान ये , कभी खो रही है धुल सी। कभी सूरज को घूरे ये उसे खाक करने को, कभी बस यूँ ही चाँद से खाक है हो रही। कभी टूटी तार ये साज़ की, कह कुछ पाती नही। कभी चलती है कभी रूकती है, एक सफ़र नहीं करती ये तय| हर राह ही इसकी अपनी है , हर कदम पे मुडती ये है। कुछ रोज़ मुझे बनाती है ये, कुछ रोज़ ख़तम करती ये है।