बैठी हूँ सन्नाटे में.....मन मे लेकिन शोर है..... उजाले से लिपटी हूँ.....पर अंधेरा हर ओर है..... कुछ हसरतें हैं मन में.....जो सिकुङ-सिकुङ के रहती हैं..... बह जाने की धुन मे न जानें क्या क्या सहती हैं..... जेब की भार की चाह ने देखो क्या बना दिया..... मंजिलों को छोङकर भेङचाल को पनाह दिया.....
कदम तो चलना सीख गए लेकिन थिरकना भूल गए..... खिला दिए फूल पर महक छिङकना भूल गए..... न फिकर थी,न जश्न था..अब मैं जिंदगी की गुलाम हूँ..... पहचान पत्र लगा के आज भी गुमनाम हूँ..... दूसरों की बहुत पढी..सोचा चलो खुद की कहानी लिखा दूँ..... कोरे पन्नों को समेटूँ और सूखी स्याही गिरा दूँ.....